Friday 30 September 2011

पीटने की कला


राजस्थान की पुलिस तो बिलकुल ही निकम्मी निकली। राजस्थान के गृहमंत्री मारे शर्म के  धरती में दबे जा रहे हैं। उनकी तो नाक कटा दी पुलिस ने। न जाने कितनी बैठकें ली होंगी, उच्चाधिकारियों को कितना समझाया होगा लेकिन सब कुछ बेकार गया। पुलिसवाले ठहरे अनपढ़ और जाहिल। पुलिस को जिस काम के लिये बनाया गया है, ये वो काम भी ठीक ढंग से नहीं कर पाते। पुलिस वालों को पीटना भी नहीं आता। मंत्री महोदय का गुस्सा और झुंझलाहट बिलकुल वाजिब है कि अगर पुलिस ‘दुष्ट’ जनता की सुताई नहीं कर सकती तो फिर उन्हें कौन सबक सिखायेगा? क्या ये काम भी चोर-बदमाशों के हवाले कर दिया जाये? जो लोग जनता के पिटने पर इतना हो-हल्ला मचाते हैं, क्या वे नहीं जानते कि आजादी के बाद से हमारी पुलिस जनता को पीटने का काम तो करती आ रही है। शेर को कितने दिन शाकाहारी रखा जा सकता है? इसलिये पुलिस वाले तो डंडा चलाते हुए ही शोभा देते हैं।
पुलिस को कुछ तो शर्म आनी चाहिये। दरअसल ये सब छठे वेतन आयोग का असर है। तनख्वाहें इतनी बढ़ गई है कि मेहनत से जी चुराने लगे है पुलिसवाले। सबकी तोंद निकल रही है। खा-खाकर मोटा रहे हैं। आरामतलबी के आलम में थप्पड़, घूसे और लातें चलाना भी भूल गयी है पुलिस। अरे भई दिल्ली पुलिस से कुछ तो सीखो। योगगुरू रामदेव और उनके चेले-चपाटों की क्या मस्त धुनाई की थी दिल्ली पुलिस ने। सबको नानी याद दिला दी दिल्ली पुलिस के डड़े ने।
पहले की पुलिस पीटने के बुनियादी काम में बहुत माहिर होती थी। कोई रोक-टोक भी तो नहीं थी। अब तो इतनी सारी संस्थाएं बना दी गई हैं खुद पुलिस पर नजर रखने के लिये। लेकिन बात तो तब बनेगी न जब उन सभी संस्थाओं की आंख में धूल झोंककर पुलिस पीटती रहे और जनता पिटती रहे। अब भ्रष्टाचार को ही ले लीजिये। जनता और मीडिया भले ही शोर मचाती रहे, या जेपीसी, सीवीसी और सीबीआई कितनी भी जाँच करती रहे, आदतन भ्रष्ट रास्ता निकाल ही लेता है। 2जी की मिसाल हमारे सामने है।
धारीवाल साहब की यह चाहत बिलकुल सही है कि पुलिस को अपनी खोई हुई ख्याति वापस दिलानी ही पड़ेगी, वरना जनता तो सिर चढऩे लग जायेगी। हो सकता है कि धारीवाल जी पुलिस को पीटने का गुर वापस सिखाने के लिये ब्रिटिश राज के दौर में पुलिस महकमे में काम कर चुके तजुर्बेकार पुलिस अधिकारियों की सहायता ले ले। इसके लिये ब्रिटेन की सरकार से सम्पर्क किया जा सकता है और इच्छुक अंग्रेजों को राजस्थान में एक विशेष सम्मेलन में बुलाया जा सकता है। यह सही है कि इनमें से अधिकांश लोग बहुत बूढ़े हो गये होंगे लेकिन किसी ने सही कहा है कि बंदर कितना भी बूढ़ा क्यों न हो जाये, गुलाची खाना नहीं भूलता। कुछ न कुछ तो हमारे पुलिसवाले सीख ही जायेंगे।

1 comment:

  1. धीरे धीरे पुलिस वाले भी सीख जायेंगे।

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