Tuesday 20 September 2011

नमकहराम से परेशान उद्धव


उद्धव ठाकरे की पीड़ा समझी जा सकती है। चचेरे भाई राज ने रंग में भंग डाल दी है। तभी तो ‘नमकहराम’ राज को कोस रहे हैं जिनके कारण उद्धव के मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब केवल ख्वाब ही रह गया।
लेकिन चचेरा भाई भी क्या करता? मजबूर था। राज ने अपनी पूरी जवानी अपने ताया बाल ठाकरे की सियासत को चमकाने में लगा दी। सोचा था कि ताजपोशी तो उन्ही की होगी। लेकिन बाल ठाकरे ने घृतराष्ट्र का पुत्र मोह दिखा ही दिया। राज को किनारे कर दिया। उद्धव ने बिना कुछ मेहनत किये दोनो हाथों से लड्डू बटोरने चाहे। लेकिन राज ने कोई कच्ची गोलियां थोड़ी खेली थी। ताया से सियासत के सारे गुर सीख लिये थे। बना ली नई पार्टी और कर दिया उद्धव का सारा काम बिगाड़ा। जो कांग्रेस नहीं कर पायी वो राज ने कर दिया।
उद्धव के जले पर नमक छिडक़ने का कोई मौका राज नहीं गंवाते हैं। उद्धव भैया को फोटोग्राफी का बहुत शौक है। लेकिन राज उन्हें चैन से फोटोग्राफी भी नहीं करने दे रहे हैं। बड़े भाई को निशाना बनाते हुए कह दिया कि ‘कुछ लोग तो दूसरे राज्यों में जाकर जानवरों के फोटो निकालते हैं, अच्छा तो यह होता कि यह लोग मुंबई में घूमकर यहां के गढ्ढों के फोटो खींचते।’
भडक़ गये उद्धव। भडक़ना ही था। गद्दार की इतनी हिम्मत। नमकहराम ने जिस थाली में खाया, उसी में छेद कर दिया। जानवर से भी गया बीता निकला। मन में तो ऐसे भाव आना स्वाभाविक है। लेकिन जुबान पर कुछ तो कंट्रोल होना चाहिये। आखिर उद्धव शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं।
लेकिन उद्धव को कौन समझाये? अगर महाराष्ट्र कोई राजशाही होता तो पिता के बाद पुत्र को राजगद्दी मिल भी जाती। ये तो लोकशाही है। यहां तो वोटों का कारोबार होता है। जिसने ज्यादा बटोरे, वो या तो सिंहासन पर बैठता है या फिर किसी का सिंहासन छीन लेता है।

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