Sunday 18 September 2011

दिल्ली अभी दूर है


क्या कोई बिल्ली सौ-सौ चूहे खाकर हज नहीं जा सकती। क्यों नहीं जा सकती? खुदा अपने बंदों को कभी अपना नाम लेने से नहीं रोकता। नरेन्द्र मोदी गलत रास्ता छोडक़र सही रास्ते पर आने की इच्छा जता रहे हैं।  स्वागत है उनका। भारतीय संस्कृति तो सुबह के भूले को शाम घर आने की पूरी छूट देती है। तो फिर दिक्कत कहां है?
दो हजार मुसलमानों की मौत के जिम्मेदार नरेन्द्र भाई प्रायश्चित तो करना चाहते हैं लेकिन अपनी शर्तों पर। जैसी उनकी इच्छा। उपवास कर रहें हैं लेकिन पूरे धूम-धड़ाके के साथ। उपवास कम, दरबार ज्यादा लग रहा है। कोई बात नहीं। अपने अनशन पर ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ को चार-पाँच करोड़ खर्च करने का अधिकार तो मिलना ही चाहिये। चापलूसों और मीडिया की पूरी फौज के सामने अपनी इच्छाएं जनता के सामने रख रहे हैं। इससे भी कोई परहेज नहीं। तथाकथित ‘दूसरे गांधी’ अन्ना भी तो आजकल यही करने लगे हैं। मोदी के मंच पर उनका गुणगान करने के लिये टोपीधारी मुसलमान मौजूद हैं। औरतें भी और आदमी भी। इस आरोप को भी खारिज किया जा सकता है कि मंच पर विराजमान मुसलमान भाड़े के मुसलमान हैं। अगर वे भाड़े के टट्टू नहीं भी हैं तो भी पानी में रहकर मगरमछ से बैर भला कौन ले।
लेकिन मोदी के इरादों में खोट है। मोदी की नजर प्रधानमंत्री पद पर है। इसमे कोई शक नहीं है कि हिन्दुओं में एक वर्ग ऐसा है जिसका दिल मोदी के लिये धडक़ता है। वो वर्ग मोदी को दिल्ली की गद्दी पर बिठाना चाहता है। इसके लिये अगर क्षमायाचना का आडंबर भी करना पड़े तो कोई गम नहीं। मोदी और उनके समर्थक इतनी जल्दी क्यों भूल गये कि उनके राजनीतिक गुरू आडवाणी तो बाबरी मस्जिद विध्वंस के अप्रत्यक्ष दोषी थे। उनके इस अपराध ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री बना दिया था। इंडिया शाइनिंग का भोंडा नारा जब जीत ना दिला पाया तो जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने के लिये पाकिस्तान तक चले गये। लेकिन प्रधानमंत्री पद हाथ नहीं आ पाया। आज तक पीएम इन वेटिंग ही बने हुए हैं। मोदी के लिये तो दिक्कत आडवाणी से दोगुनी हैं।
इस फाइव स्टार उपवास के दौरान अमरीकी कांग्रेस की एक समिति की रिपोर्ट तो कांग्रेस के लिये मन-मांगी मुराद की तरह है। मीडिया ने जिस बेवकूफी से मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताना शुरू कर दिया है, मुसलमान भाजपा से और दूर हो रहा है।

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