Tuesday 13 September 2011

अन्ना की खतरनाक सीख


कितनी विडंबना है, हमारे लोकतंत्र की? जनतंत्र और जनशक्ति को मजबूत करने का श्रेय लेने वाला एक गैर-राजनीतिक शक्स उस राजनेता की तारीफ कर रहा है जिसने देश में लोकतंत्र के मार्ग में रोड़े अटकाये थे।
अन्ना हजारे चाहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी भी अपनी सास और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जैसी बनें। यानी जो कसर बची है, उसे भी पूरा कर लिया जाये। लगता है कि अन्ना पर किरन बेदी के विचारों का काफी प्रभाव है। किरन ने रामलीला मैदान पर बने मंच से कहा कहा था कि अन्ना इज इंडिया, इंडिया इज अन्ना। कुछ ऐसी ही गलतफहमी इंदिरा गांधी के चापलूसों को हो गयी थी तभी तो देवकांत बरूआ ने कह दिया था कि इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया।
क्या अन्ना जानते हैं कि भारत की तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं को बनाने और पोषित करने में जितनी अहम भूमिका इंदिरा के पिता जवाहरलाल ने निभाई थी, उससे ज्यादा कुख्यात भूमिका इंदिरा ने इन संस्थाओं की तोड़-फोड़ करने में निभाई। क्या अन्ना को यह नहीं पता कि राज्यपाल की संस्था का खतरनाक ढ़ंग से राजनीतिकरण इंदिरा गांधी ने किया, वैसा दूसरा उदाहरण नहीं मिल सकता। इंदिरा के शासनकाल में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई विपक्षी दल की अनेक सरकारों को मनमाने ढ़ंग से बर्खास्त किया गया। अन्ना हजारे बड़ी जल्दी भूल गये कि इंदिरा के अनेक कदम संवैधानिक मर्यादाओं का खुलेआम उल्लंघन करते थे। यह तो अन्ना को कोई भी बात सकता था कि हाईकमान संस्कृति को बढ़ावा देकर इंदिरा ने क्षेत्रीय नेतृत्व को पूरी तरह खत्म कर दिया। काबिल व्यक्तियों की घोर अनदेखी कर उन्होंने नाकाबिल लेकिन चापलूस लोगों को ऊंचे पदों पर बिठाया। अन्ना यह तो मानते होंगे कि अरूणा राय नाकाबिल नहीं हैं। 
 क्या अन्ना को उनके साथियों ने नहीं बताया कि अगर इंदिरा गांधी या उनके जैसी शक्सियत प्रधानमंत्री होती तो वो आज जननायक नहीं होते और इस तरह सरकार के खिलाफ विषवमन करने से पहले कई बार सोचते।
कम से कम श्रीमती सोनिया गांधी को इस बात का तो धन्यवाद देना चाहिये कि उन्होंने इंदिरा गांधी जैसा दमनात्मक रवैया अख्तियार नहीं किया, अन्यथा 16 अगस्त की तो नौबत ही नहीं आती। अन्ना को अप्रेल में ही ऐसा सबक सिखाया जाता कि उनकी टीम दोबारा अन्ना का साथ देने से पहले लाख बार सोचती।
अन्ना अगर जस्टिस संतोष हेगड़े से ही बातचीत कर लेते तो उन्हें पता चल जाता कि आपातकाल में किस तरह इंदिरा विरोधियों को जेलों में ठूंसा जाता था। उस दौरान जस्टिस हेगड़े अनेक राजनेताओं को गैर-कानूनी कैद से छुड़वाने के लिये कानूनी संघर्ष कर चुके हैं। वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण भी अन्ना को बता देते कि आपातकाल में किस प्रकार मूल अधिकारों की धज्जियां उडाय़ी गयी।
अगर सोनिया गांधी, इंदिरा गांधी के नक्शे कदम पल चल पड़ी तो अन्ना और उनकी टीम को भगवान ही बचाये।

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