Saturday 10 September 2011

रथ यात्रा की तैयारी


  पुराने संस्कार जल्दी नहीं मरते। विज्ञान के बलबूते इंसान ने साइकिल से शुरू कर हवाईजहाज तक का सफर कर लिया। लेकिन भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी को रथ बहुत पसंद हैं। कार चाहे किसी भी देसी-विदेशी ब्रांड की क्यों न हो, लेकिन आडवाणी रथ में बैठते ही बहुत ही कम्फरटेबल महसूस करते हैं। रथ पर विराजमान होते ही उनके  दिमाग को भरपूर तरोताजगी मिलती है। अगर उनका बस चले तो संसद की कार्यवाही में भाग लेने भी रथ में बैठकर जायें।
  रथ को घोड़ों द्वारा खीचा जाता है लेकिन आज के समय घोड़े पालना व्यावहारिक  नहीं रहा। अगर एक राजनीतिक दल अपने नेता की इच्छापूर्ति के लिये घोड़े रखने लग जाये तो कितनी जगहंसायी होगी और विरोधी क्या-क्या बातें बनायेंगे। इसलिये अपने सलाहकारों की बात मानते हुए आडवाणी घोड़ों के स्थान पर जीप का इस्तेमाल कर लेते हैं।
  समय-समय पर आडवाणी रथ लेकर निकलते भी हैं। दो-चार किलोमीटर के छोटे सफर पर नहीं, बल्कि हजारों किलोमीटर की लम्बी यात्राओं पर। आम इंसान हो तो बस या कार में ज्यादा सफर नहीं कर पाता और उसे भारीपन महसूस होने लगता है। लेकिन आडवाणी का रथ जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, वे ज्यादा सहज होने लगते हैं और भरपूर उर्जा महसूस करने लगते हैं। काफी समय से उन्होंने अपना रथ बाहर नहीं निकाला। नौकर-चाकर भी दबी जुबान में कहने लगे हैं कि अगर रथ का इस्तेमाल ही नहीं करना तो उसे बेचते क्यों नहीं। रोज-रोज सफाई करनी आसानी थोड़ी है।
  आडवाणी के रथ प्रेम ने उनसे कई यात्राएं करवायी। लेकिन राम मंदिर के लिये की गई उनकी पहली रथ यात्रा जितनी सफलता बाद की यात्राएं नहीं प्राप्त कर पायी। आडवाणी को लगता है कि एक बार फिर रथ निकालने का वक्त आ गया है। सात साल से विपक्ष में बैठकर आडवाणी का उत्साह और उमंग बहुत कम हो गया है और उसे वापिस हासिल करने के लिये रथ यात्रा से बेहतर तरीका क्या होगा। अब रथ यात्रा का कोई मुद्दा भी तो होना चाहिये। तो मुद्दा होगा भ्रष्टाचार।
  इन दिनों पूरे देश में भ्रष्टाचार विरोधी माहौल पहले से ही बना हुआ है। अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बनकर उभरे हैं। आलोचक कह रहे हैं कि आडवाणी इस माहौल को भुनाना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि देर से सही लेकिन आडवाणी को यह याद तो आया कि यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार का विरोध तो विपक्ष को करना चाहिये था। और ये काम अन्ना एंड पार्टी ने करके सारी मलाई लूट ली।
खैर, भाजपा में नेताओं की दूसरी कतार भी आडवाणी की प्रस्तावित रथ यात्रा से चिंतित है। उनका भयभीत होना भी लाजमी है कि अगर रथ यात्रा सफल हो गई तो 84 वर्षीय आडवाणी पार्टी में फिर से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी जता सकते हैं। सच क्या है ये तो पीएम इन वेटिंग आडवाणी ही बता सकते हैं।
रथ यात्रा तो तय हो गई लेकिन यह तय करना बाकी है कि आडवाणी का सारथी कौन होगा। जनार्दन रेड्डी या येदीयुरप्पा या फिर बंगारू लक्ष्मण।

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