Thursday 22 September 2011

बिन लाल बत्ती सब सून


सारी खुदाई एक तरफ, और लाल बत्ती एक तरफ। लाल बत्ती की माया ही ऐसी है। एक बार किसी को मिल जाये तो छोडऩे की इच्छा ही नहीं होता। किसी कारण वश छिन जाये तो वही हालत होती है जैसे जल बिना मछली की। उससे भी बदतर। हमारे जो सांसद लोकसभा का चुनाव जीत जाते हैं, मंत्री बनकर लाल बत्ती का असली सुख भोगने की कोशिश में जुट जाते हैं। जो हार जाते हैं या जीतने की कुव्वत ही नहीं रखते, मन तो उनका भी लाल बत्ती के लिये ही धडक़ता है। उनके जीवन में अधूरेपन को भरने के लिये लाल बत्ती की व्यवस्था जरूरी हो जाती है, इसलिये राज्य सभा का मार्ग तलाशते हैं।
राज्यों में भी लाल बत्ती की महिमा अपरम्पार है। जो विधायक चुनाव जीत जाते हैं, तो मंत्री बनना उनकी पहली पसंद होता है। हारने वाले कद्दावर नेता बिना लाल बत्ती अपने जीवन की कल्पना ही नहीं कर पाते और निगम-बोर्ड के अध्यक्ष बनकर लाल बत्ती की जुगाड़ कर ही लेते हैं। लाल बत्ती में कितने गुण हैं, उसकी परख आम आदमी को थोड़ी है। राजनेता ही जानते हैं कि लाल बत्ती जिस पर भी मेहरबान हो जाये तो उसकी सात पुश्तों का उद्धार हो जाता है। जीवन इतना उमंग, उल्लास, और आनंद से भर जाता है कि स्वर्ग और मोक्ष जैसी छोटी-मोटी चीजों की जरूरत ही महसूस नहीं होती।
अब अगर किसी मंत्री से लाल बत्ती छीन ली जाये तो सोचिये उसका क्या हश्र हो। उसका तो जीवन ही नरक बन जाये। मछली की तरह तडफ़ड़ाने लग जाये। जब से लालूयादव जी की कार से लाल बत्ती गायब हुई है उनके आभामंडल का तो तेज ही गायब हो गया है। कांग्रेस के पक्ष में कांग्रेसजनों ने जितने बयान नहीं दिये होंगे, उतने तो लालू जी ने दे दिये हैं। लेकिन लाल बत्ती अभी भी पास नहीं फटक रही है।
 कुछ ऐसा ही हाल राजस्थान के एक मंत्री महोदय अमीन साहब का हुआ।वक्फ और राजस्व मंत्री थे श्री अमीन खां। लाल बत्ती की पूरी छत्रछाया थी। कुछ ऐसा बोल दिया जिसके बाद सोचने लगे होंगे कि काश जुबान ही नहीं होती। राष्ट्रपति महोदया की शान के खिलाफ बोलने के जुर्म में लाल बत्ती छीन ली गई। जो कुछ कहा वो भले ही अमीन साहब की नजरों में तथ्यात्मक रूप से सही रहा हो लेकिन राजनीतिक शिष्टाचार के विरूद्ध था।
बेचारे स्पष्टीकरण देते थक गये लेकिन हाईकमान सख्त था। अल्पसंख्यक होने का भी कोई फायदा नहीं मिला। इधर-उधर की दौड़ लगाई लेकिन कमान से तीर तो निकल चुका था। बेचारे अमीन साहब बिना लाल बत्ती नारकीय जीवन जी रहे थे कि राष्ट्रपति महोदया का राजस्थान में आना हुआ। पहुँच गये उनकी शरण में। माफी मांगने। दण्डवत करके सफाई देने लगे। कहा कि इरादे सही था लेकिन अल्फाज गलत। राष्ट्रपति महोदया तो निर्मल स्वभाव की हैं। करूणाभाव भी है उनमें। किसी बात को दिल में नहीं रखती। माफ कर दिया। अब देखते हैं कि हाईकमान क्या निर्णय लेती हैं? यह दुआ करते हैं कि श्री अमीन खां की कुंडली में जो राजयोग है, उस पर लगा ग्रहण दूर हो जाये।
लेकिन राजस्थान के मंत्रियों के तो वैसे भी बुरे दिन चल रहे हैं। गोपालगढ़ की घटना के बाद सुना है कि श्रीमती सोनिया गांधी गृहमंत्री श्री शांति धारीवाल से नाराज चल रही हैं। कांग्रेस के राज में अल्पसंख्यकों की पुलिस फायरिंग में मौत। लगता है कि एक और लाल बत्ती गुल होगी।

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