Sunday 4 September 2011

ईशनिंदा के दोषी

अन्ना हजारे की जनलोकपाल मुहिम के समर्थन में देशभर में उतरे अनगिनत समर्थकों ने हमारे बुद्धिजीवियों की रातों की नींद उड़ा दी है, दिन का चैन छीन लिया है। उन्‍हें समझ में नहीं आ रहा हैं कि उपभोक्ततावाद के सुनहरे समंदर में डुबकी लगाने वाले शहरी इंडियन मध्यमवर्ग ने उस ठेठ देहाती बूढ़े आदमी को अपना ‘आइकॉन’ कैसे मान लिया है जो अंग्रेजी तो दूर की बात, हिन्दी भी ठीक तरीके से नहीं बोल सकता और दिन-रात सादगी की घिसीपिटी उबाऊ बातें करता रहता है। बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर दिल्ली और अन्य शहरों में उमड़ा जनसैलाब भाड़े की भीड़ नहीं था तो अवश्य वह भावनात्मक ज्‍वर की अतार्किक अवस्था में रहा होगा और दो-चार हफ्ते में वापस अपनी पुरानी अवस्था में लौट आयेगा। 
  उनके विचार में यह ‘दूसरी आजादी का तमाशा’ पूंजी-पुजारी इलेक्ट्रोनिक मीडिया, अमरीका-प्रायोजित सिविल सोसायटी और सत्ता-लोलुप भाजपा की सामूहिक जुगलबंदी से ज्यादा कुछ नहीं था जिसमें रामलीला मैदान को तहरीर चौक में तब्दील करने की खतरनाक साजिश रची गयी।  भारतीय जनतंत्र की वर्तमान शोषणकारी संरचना एवं स्वरूप पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले आमआदमी हमारे बुद्धिजीवियों की नजरों में फासीवादी हो गये हैं। बुद्धिजीवियों की इस जमात को अन्‍ना हजारे के इरादों में तो खोट नजर नहीं आती लेकिन उनके तौर-तरीके घोर अलोकतांत्रिक लगते हैं। कुछ महानुभाव यह कहते नहीं थक रहे हैं कि लोकतंत्र में कानून सडक़ पर नहीं, संसद में बनते हैं लेकिन इस बात का कोई जवाब उनके पास नहीं है जिस कानून को बनाने की जिम्मेदारी सांसद पिछले चार दशक से टाल रहे हों, उसे कहां बनाया जाये? 
  प्रतिद्वंद्वी सिविल सोसायटी द्वारा टीम अन्ना की खुली मुखालफत से उत्साहित कुछ सांसदों के बयानों में यह झलकने लगा है कि उनके खिलाफ कुछ भी बोलना ईशनिंदा से भी बड़ा पाप है। जो भी यह नाकाबिले बर्दाश्‍त गुस्‍ताखी करेगा, उसे सबक तो सिखाना ही पडेगा। न्‍यूज चैनलों के प्राइम टाइम को हड़पने वाले अन्ना से जुड़े तमाम ‘सरफिरों’ को विशेषाधिकार हनन नोटिस थमा दिया गया है। क्या अगला विशेषाधिकार हनन नोटिस अभिनेता आमिर खान को मिलेगा जिन्होंने केजरीवाल को सांसदों के घरों का घेराव का सुझाव दिया था? वैसे तो अन्ना को चेतावनी दे दी गई है कि अगर उन्होंने अपनी ‘जुबान पर लगाम’ नहीं दिया तो विशेषाधिकार का डंडा उन पर भी पड़ सकता है। 

2 comments:

  1. इस बार जिन लोगों ने सरकार में फैले भ्रष्‍टाचार की सफाई करने का मानस बनाया है, उसमें ऐसे लोग शामिल हैं, जो सरकार की ऊटपटांग हरकतों का जवाब देना जानते हैं...

    अन्‍ना अकेले होते तो शायद यह करिश्‍मा नहीं होता.. लेकिन जो साथ जुड़े हैं उन्‍हें कीमत तो चुकानी ही होगी...

    देखते हैं यह ड्रामा कितना आगे जाता है... मैं अन्‍ना के साथ हूं...


    अच्‍छा आलेख नचिकेता... आपका स्‍वागत है...


    और हां वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें तो बेहतर है... :)

    ReplyDelete
  2. यह नाकाबिले बर्दाश्‍त गुस्‍ताखी करेगा इस प्रकार के जुमलों से आगे बढ़ो नचिकेता जी प्रयोगधर्मी होकर भाषाई स्तर पर भी।

    ReplyDelete