आलोचकों का तो काम ही आलोचना करना होता है। पुलिस इतना शानदार काम कर रही है, फिर भी आलोचना। न करे तो भी आलोचना। पुलिस ने वोट के बदले नोट कांड में दलालों और घूसखोरों को गिरफ्तार कर लिया तो भी आलोचक खुश नहीं है। वे चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि ऐसा कैसे संभव है कि जिस पार्टी की सरकार को बचाने के लिये सांसदों को खरीदने की साजिश रची गयी, उसका एक भी सदस्य न तो नामजद हुआ है और न ही जेल की सलाखों के पीछे है। उन्हें कौन समझाये कि पुलिस के कामकाज में कांग्रेस पार्टी कोई हस्तक्षेप नहीं करती। अन्ना हजारे का ही उदाहरण ले लीजिये। अन्ना के अनशन से शांति भंग होने का डर था, तो पुलिस ने उन्हें तिहाड़ भेज दिया। इसी तरह अगर पुलिस को लगा कि अमर सिंह जी ने कोई गलत काम किया था तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सरकार इन मामलों में कोई दखल नहीं देती।
जहां तक यह सवाल है कि कांग्रेस के किसी भी नेता का नाम इस कांड में नहीं आया तो आलोचकों की बेवकूफी पर हंसी भी आती और रोना भी। यदि कोई स्वेच्छा से ही एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ सरकार को बचाने में जुट जाये तो कांग्रेस भला उसे क्यों मना करे। यह पुनीत कार्य झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद श्री नरसिंह राव जी के समय कर चुके हैं।
यह अत्यन्न प्रसन्नता की बात है कि अमर सिंह जी के मन में श्रीमती सोनिया गांधी, राजकुमार राहुल और श्री मनमोहन सिंह जी के प्रति इतना सम्मान है कि वे उनकी सरकार को बचाने के लिये अपने हाथ जलाने को तैयार हो गये। इन हस्तियों का ऐसा सम्मान देश का हर नागरिक करे तो भारत को रामराज्य बनने से कौन रोक सकता है।
अमर सिंह जी परमाणु समझौते की अहमियत भी तो जानते थे। उन्हें पता था कि अगर यह समझौता नहीं हुआ तो भारत के घरों में बिजली नहीं जलेगी, बच्चों को पढऩे के लिये लालटेन का सहारा लेना पड़ेगा और देश का औद्योगिक विकास रूक जायेगा। फिर अमर सिंह जी आम आदमी के लिये घडिय़ाली आंसू बहाने वाले वामपंथी दलों की तरह दोहरे मापदंड नहीं रखते। अगर सरकार विश्वासमत हासिल नहीं कर पाती तो देश को खर्चीले मध्यावधि चुनाव झेलने पड़ते। वोट मांगने वाला और वोट देने वाला दोनों कितने परेशान होते। अमर सिंह जी धर्मनिरपेक्ष भी तो हैं। अगर साम्प्रदायिक ताकतें जनता की भावनाएं भडक़ा कर चुनाव जीत जाती तो देश का कितना अहित होता?
हकीकत यही है कि अमर सिंह जी कांग्रेस के लिये नहीं बल्कि राष्ट्र की तरक्की के लिये काम कर रहे थे। इतनी राष्ट्रवादी सोच के व्यक्ति को दलाल कहना अशोभनीय और असंसदीय है। आलोचकों को शर्म आनी चाहिये। अमर सिंह जी का तरीका भले ही कुछ गलत रहा हो लेकिन इरादा तो बहुत नेक था। इसके लिये कांग्रेस को अमर सिंह जी का आभार करना चाहिये और उनके प्रति सहानुभूति भी रखनी चाहिये। जहां तक कानून की बात है तो वह अपना काम करता रहेगा।
नोटों के बंडल कहां से आये, किसने किसको दिये, ये सब बातें फिजूल की है और केवल जनता का ध्यान भटकाने के लिये पूछी जा रही है। धन का स्रोत पता लगाने से कहीं ज्यादा अहम है उन दो भष्ट सांसदों को सख्त से सख्त सजा दिलाना जिन्होंने सदन की गरिमा को तार-तार कर नोटों के बंडल हवा में लहराये। इससे अमर सिंह जी जैसे कांग्रेस प्रेमियों अर्थात राष्ट्र प्रेमियों को दिक्कत उठानी नहीं पडेगी।
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