Tuesday 18 October 2011

चिराग तले अंधेरा

रालेगण सिद्धी के 'अपमानित' सरपंच ताल ठोक कर कह रहे हैं कि वे अब जीवन में कभी भी राहुल गांधी से नहीं मिलेंगे। वजह यह है कि उन्‍हें दिल्‍ली बुलाकर भी मिलने का समय नहीं दिया। अरे भई, राहुल भारत के भावी प्रधानमंत्री हैं। उन्‍हें बहुत काम-काज रहता है। समय नहीं मिल सका। इसमें इतना हायतैबा मचाने की कहां जरूरत आ पड़ी।
हो सकता है कि राहुल उस सरपंच की यह परीक्षा ले रहे हों कि वह खुद अन्‍ना हजारे के कथनों का कितना पालन करता है। दरअसल अन्‍ना हजारे ने कुछ सिद्धांत ‘वगैरह’ बना रखे हैं जिनमें अपमान सहना भी शामिल  है।
अन्‍ना खुद भी कई बार कह चुके हैं कि इंसान में अपमान सहने की शक्ति होनी  चाहिये। आज अन्‍ना के गांव का सरपंच ही अन्‍ना के सिद्धांतों को नहीं मान रहा है और कथित अपमान का घूंट पीना उसे जहर पीने जैसा लग रहा है। इसे कहते हैं - चिराग तले अंधेरा।

Sunday 9 October 2011

तू चोर, मैं चोर..सब चोर

जो जैसा देखना चाहता है उसे दुनिया वैसी ही नजर आती है। या यूं कहें कि जो जिसमें डूब जाता है उसे लगता है कि पूरी दुनिया ही उसमें डुबकी लगा रही है। जो दिन-रात ईश्‍वर का नाम जपते हैं, उन्‍हें घट-घट में राम नजर आता है। अन्‍ना के चाहने वालों को लगता है कि मैं भी अन्‍ना, तू भी अन्‍ना, अब तो सारा देश है अन्‍ना। इसी तरह अगर चोर को लगता है कि पूरी दुनिया ही चोर है तो उसकी सोच बिलकुल स्‍वाभाविक ही है। राजस्‍थान के बयानबाजी विशेषज्ञ गृह मंत्री श्री शांति धारीवाल का विचार कि पूरी जनता अब चोर हो गयी है और उसे हर कोई चोर नजर आने लगा है। धारीवाल साहब कहते हैं कि जनता की नजरों में राजनेता चोर है, पुलिस चोर है, व्‍यापारी चोर है, अधिकारी चोर है।
बात सही भी है। जनता को चोरी की आदत पड़ गई है। चोरी अब जनता की रग-रग में समा चुकी है। जनता को ईमानदारी नजर ही नहीं आती। धारीवाल साहब और उनकी पार्टी कितनी ईमानदार है यह पूरी दुनिया जानती है लेकिन भारत की इस मूर्ख जनता का क्‍या करें। उसे तो हर जगह बस चोर ही चोर नजर आ रहे हैं।
इसलिये हो सकता है कि गृह मंत्री महोदय पुलिस को चोर और चोरी पकड़ने के कार्य से मुक्ति दे दें।  अब चोरी रोकने का तो  कोई फायदा ही नहीं है। अगर पुलिस ने गलती से चोर को पकड़ भी लिया तो जनता की नजर में पुलिस चोर है। अगर किसी नामी-गिरामी चोर ने नेकी का रास्‍ता अपना लिया और चोरी से तौबा कर ली तो भी जनता उसे ईमानदारी का प्रमाणपत्र जारी नहीं करेगी क्‍योंकि जनता की नजरों में तो वह अभी भी चोर है। अगर कोई ठेकेदार ईमानदारी से सड़क, भवन, पुल बनाता है तो भी जनता की नजरों में तो वह चोर ही है।
नौकरशाह अगर ईमानदारी और संविधानसम्‍मत तरीके से अपना काम करते हैं, नेताओं के दबाव में फैसले नहीं लेते, जनता की भलाई के लिये सरकारी योजनाओं का क्रियान्‍वयन करते है तो यह सब बेकार है क्‍योंकि जनता की नजरों में तो वे सब चोर है।
सही कहा है- चोर चोरी से जाये, सीनाजोरी से न जाये।